chronology2017
Published: Feb 17 | Updated: Feb 17

  • देश की सर्वोच्च न्यायालय ने केन्द्र सरकार की इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम को असंवैधानिक करार देते हुए 15 फरवरी, 2024 को रद्द कर दिया है।
  • इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने निर्वाचन आयोग को विगत पाँच वर्षों के चंदे का हिसाब-किताब स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (एसबीआई) से पूरी जानकारी जुटाकर 13 मार्च, 2024 तक अपनी वेबसाइट पर साझा करने के लिए भी कहा है।
  • सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम में गोपनीय का प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 19(1) के तहत सूचना का अधिकार कानून का उल्लंघन करता है। अब शीर्ष अदालत के फैसले के बाद पब्लिक को भी पता होगा कि किसने, किस पार्टी की फंडिंग की है।
  • सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में कहा कि चुनावी बांड योजना, आयकर अधिनियम की धारा 139 द्वारा संशोधित धारा 29(1)(सी) और वित्त अधिनियम 2017 द्वारा संशोधित धारा 13(बी) का प्रावधान अनुच्छेद 19(1)(ए) का उल्लंघन है।
  • उक्त निर्णय भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने दिया है, जिसमें सीजेआई के साथ जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा शामिल हैं।
  • सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्टोरल बॉन्ड के बारे में आशंका जताई है कि राजनीतिक दलों की फंडिंग करने वालों की पहचान गुप्त रहेगी तो इसमें रिश्वतखोरी का मामला बन सकता है।
  • न्यायालय द्वारा कहा गया है कि इस स्कीम को सत्ताधारी दल को फंडिंग के बदले में अनुचित लाभ लेने का जरिया बनने की अनुमति नहीं दी जा सकती है।

क्या है इलेक्टोरल बॉन्ड?

  • इलेक्टोरल बॉन्ड एक तरह का वचन पत्र है, जिसके जरिए राजनीतिक दलों को चंदा दिया जाता है. कोई भी नागरिक या कंपनी भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) की चुनिंदा शाखाओं से इलेक्टोरल बॉन्ड खरीद सकती है और अपनी पसंद की पॉलिटिकल पार्टी को गुमनाम तरीके से चंदा दे सकती है, इसमें देने वाले का नाम सार्वजनिक नहीं किया जाता।