राष्ट्रीय संग्रहालय, नई दिल्ली से बुद्ध के पवित्र अवशेष प्रथम प्रदर्शनी के लिए रूस के काल्मिकिया जा रहे हैं तथा उनके साथ वरिष्ठ भारतीय और अंतरराष्ट्रीय भिक्षुओं का एक उच्चस्तरीय प्रतिनिधिमंडल इस क्षेत्र की बौद्ध बहुल आबादी के बीच उपस्थित रहेगा।
- अंतरराष्ट्रीय बौद्ध मंच : भारत सरकार का संस्कृति मंत्रालय, अंतरराष्ट्रीय बौद्ध परिसंघ (आईबीसी), राष्ट्रीय संग्रहालय और इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र (आईजीएनसीए) के सहयोग से, रूस के काल्मिकिया की राजधानी एलिस्टा में 24 से 28 सितंबर, 2025 तक आयोजित किया जा रहा है।
- थीम व आकर्षण : ‘नई सहस्राब्दी में बौद्ध धर्म’ विषय पर आधारित इस मंच का मुख्य आकर्षण भारत से शाक्यमुनि के पवित्र अवशेष, आईबीसी और राष्ट्रीय संग्रहालय द्वारा आयोजित चार प्रदर्शनियां और तीन विशेष शैक्षणिक व्याख्यान होंगे।
- इस तीसरे अंतरराष्ट्रीय बौद्ध मंच में राष्ट्रीय संग्रहालय में स्थापित पवित्र बौद्ध अवशेषों की पहली बार एक प्रदर्शनी का आयोजन किया जा रहा है।
- ये अवशेष काल्मिकिया की राजधानी एलिस्टा स्थित मुख्य बौद्ध मठ में स्थापित किए गए हैं, जिसे गेडेन शेडुप चोइकोरलिंग मठ के नाम से जाना जाता है।
- इसे ‘शाक्यमुनि बुद्ध का स्वर्णिम निवास’ भी कहा जाता है। यह एक महत्वपूर्ण तिब्बती बौद्ध केंद्र है, जिसे 1996 में जनता के लिए खोला गया था और यह काल्मिक मैदानों से घिरा हुआ है।
- एमओयू : इस अवसर पर दो समझौता ज्ञापनों पर भी हस्ताक्षर किए जाएंगे।
- एक समझौता ज्ञापन केंद्रीय बौद्ध रूस आध्यात्मिक प्रशासन और अंतरराष्ट्रीय बौद्ध परिसंघ के बीच और दूसरा नालंदा विश्वविद्यालय के साथ है।
न्यूज फैक्ट
- भारत हांगकांग से पिपरहवा अवशेषों से जुड़े रत्नों को सफलतापूर्वक वापस लाने में सफल रहा, जहां उनकी नीलामी की जा रही थी।
- बुद्ध शाक्य वंश के थे, जिनकी राजधानी कपिलवस्तु में स्थित थी।
- 1898 में एक उत्खनन के दौरान, विलियम क्लैक्सटन पेप्पे ने उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले में बर्डपुर के पास पिपरहवा में एक लंबे समय से विस्मृत स्तूप में अस्थियों के टुकड़े, राख और रत्नों से भरे पांच छोटे कलश खोजे।
- के.एम. श्रीवास्तव ने 1971 और 1977 के बीच पिपरहवा स्थल पर और खुदाई की।
- यहाँ टीम को जली हुई हड्डियों के टुकड़ों से भरा एक संदूक मिला और उन्होंने उन्हें चौथी या पांचवीं शताब्दी ईसा पूर्व का बताया।
- इन उत्खननों से प्राप्त निष्कर्षों के आधार पर, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (अरक) ने पिपरहवा की पहचान कपिलवस्तु के रूप में की है।